माँ बचाओ बचाओ
कहना चाहा मैने
मगर मूँह बंधा था मेरा माँ
मैं रो रही थी माँ
तुम्हें आवाज़ देना चाह रही थी माँ
पता नहीं माँ
वो बुरे अंकल ने
मेरे कपडे उतार दिए
मुझे काटा , नोंचा , मारा
मुझे बहुत दर्द हुआ माँ
मैं बोल नहीं सकती थी
मुझे अब भी दर्द हो रहा है माँ
मुझे भूख लगी थी माँ
मैं तुम्हें बुला नहीं सकती थी माँ
बुरे अंकल ने मुझे बहुत मारा माँ
वो बहुत बुरे हैं माँ
होश में आने पर
जब कुछ बोल सकने लायक हुयी
तब बिलख बिलख कर , सिसक सिसक कर , तड़प तड़प कर
जब उस नन्ही जान ने
खुद पर गुजरा वाकया बयां किया
और बेटी की मार्मिक व्यथा सुन
पिता ने जैसे ही सिर पर हाथ धरा
सहम गयी मासूम हिरनी सी
आँखों में दहशत का पाला उभर आया
और चेतना शून्य हो बिस्तर पर लुढ़क गयी
आह ! किस मर्मान्तक पीड़ा से , किस वेदना से
वो मासूम गुजरी होगी
कि नन्ही जान ने पिता के
स्नेहमयी स्पर्श से भी सुध बुध खो दी
और गश खाकर गिर पड़ी
ज़रा सोचना हैवानों , दरिंदों
कैसे न तुम्हारा कलेजा कांपा
और कैसे इस देश का इन्साफ न अब तक जागा
और क्यों तुम कानूनी दांव पेंच फंसाते हो
क्यों नहीं इन दुर्दांत भेड़ियों को फांसी लगाते हो
जो सीधा सन्देश पहुँच जाए
कि अब ना कोई बलात्कारी बच पायेगा
जैसे ही पकड़ा जाएगा
तुरंत फांसी पर चढ़ाया जाएगा
गर ऐसा अब तक किया होता
तो मासूम गुडिया का ना ये हश्र हुआ होता
जिसने पांच वर्ष की उम्र में
वो ज़हर पीया है
वो वेदना सही है जो मौत से भी बदतर होती है
जो नन्ही जान न इसका कोई अर्थ समझती है
जो बस बिलख बिलख कर
बेसुध होती रही होगी
मगर बलात्कारी के चंगुल में फंसी
पिंजरे के मैना सी तड़पती रही होगी
मगर उस हैवान पर ना असर हुआ होगा
तो अब तो जागो ओ देश के कर्णधारों
कम से कम दूसरी
मासूम गुडियों और निर्भयाओं
को तो बचा लो
कुछ तो ऐसा कर डालो
जो ऐसा जुर्म करने से पहले
बलात्कारी की रूह काँप जाए
दो ऐसा दंड उसे कि
आने वाली पीढ़ी भी सुधर जाए
अब मत कानून की पेचीदगियों में उलझो
अब न जनता को और भरमाओ
ओ देश के कर्णधारों
बस एक बार उस गुडिया में
अपनी बेटी , पोती या नातिन का
चेहरा देख लेना तब कोई निर्णय लेना
कम से कम एक बार तो
अपने जमीर को जगाओ
और उस बलात्कारी दरिन्दे को
जनता को सौंप जाओ
इन्साफ हो जायेगा
इन्साफ हो जायेगा
इन्साफ हो जायेगा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है, चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है, चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती, कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती| कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।