शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

वो ख्वाब....जो करीने-कयास थे................ज़हूर नज़र


दिन ऐसे तो यूं आए ही कब थे जो रास थे
लेकिन ये चंद रोज तो बेहद उदास थे

उनको भी आज मुझसे हैं लाखों शिकायतें
कल तक जो अहले-बज़्म सरापा-सियास थे



वो गुल भी ज़हर-ख़ंद की शबनम से अट गए
जो शाख़सार दर्दे - मुहब्बत की आस थे

मेरी बरहनगी पे हंसे हैं वो लोग भी
मशहूर शहर भर में जो नंगे-लिबास थे

इक लफ़्ज भी न मेरी सफ़ाई में कह सके
वो सारे मेहरबां जो मिरे आस-पास थे

तेरा तो सिर्फ़ नाम ही था, तू है क्यों मलूल
बाईस मिरे जुनू का तो मेरे हवास थे

वो रंग भी उड़े जो नज़र में न थे कभी
वो ख्वाब भी लुटे जो करीने-कयास थे

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है, चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है, चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती, कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती| कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।