आजकल कुछ नहीं दिखता मुझे
ना संसार में फैली आपाधापी
ना देश में फैली अराजकता
ना सीमा पर फैला आतंक
ना समाज में फैला नफरतों का कोढ़
ना आरोप ना प्रत्यारोप
कौन बनेगा प्रधानमंत्री
किसकी होगी कुर्सी
किसने कोयले की दलाली में
मूंह काला किया है
किस पर कितने भ्रष्टाचार
के मामले चल रहे हैं
कौन धर्म की आड़ में
मासूमों का शोषण कर रहा है
कौन वास्तव में धार्मिक है
कुछ नहीं दिखता आजकल मुझे
जानते हैं क्यों
देखते देखते
सोचते सोचते
रोते रोते
मेरी आँखों की रौशनी जाती रही
श्रवणरंध्र बंद हो गए हैं
कुछ सुनाई नहीं देता
यहाँ तक की अपने
अंतःकरण की आवाज़ भी
अब सुनाई नहीं देती
फिर सिसकियों के शोर कौन सुने
और मूक हो गयी है मेरी वाणी
जब से अभिव्यक्ति पर फतवे जारी हुए
वैसे भी एक मेरे होने या ना होने से
कौन सा तस्वीर ने बदलना है
जोड़ तोड़ का गुना भाग तो
राजनयिकों ने करना है
मुझे तो महज तमाशबीन सा खड़ा रहना है
और हर जोरदार डायलोग पर तालियाँ बजाना है
और उसके लिए
आँख , कान और वाणी की क्या जरूरत
महज हाथ ही काफी हैं बजाने के लिए
तुम कहोगे
जब हाथ का उपयोग जानते हो
तो उसका सदुपयोग क्यों नहीं करते
क्यों नहीं बजाते कान के नीचे
जो सुनाई देने लगे
जुबान के बंध खुलने लगें
आँखों के आगे तारे दिखने लगें
बस एक बार अपने हाथ का सही उपयोग करके देखो
है ना …… यही है ना कहना
क्या सिर्फ इतने भर से तस्वीर बदल जाएगी
मैं तुमसे पूछता हूँ
क्या फिर इतने भर से
घोटालों पर ताले लग जायेंगे
क्या इतने भर से
हर माँ , बहन , बेटी सुरक्षित हो जाएगी
रात के गहन अँधेरे में भी वो
सुरक्षित घर पहुँच जायेंगी
क्या इतने भर से
हर भूखे पेट को रोटी मिल जायेगी
क्या फिर कहीं कोई लालच का कीड़ा किसी ज़ेहन में नहीं कु्लबुलायेगा
क्या हर अराजक तत्व सुधर जाएगा
क्या कानून सफेदपोशों के हाथ की कठपुतली भर नहीं रहेगा
क्या फिर से रामराज्य का सपना झिलमिलायेगा
क्या सभी कुर्सीधारियों की सोच बदल जायेगी
और उनमे देश और समाज के लिए इंसानियत जाग जायेगी
गर मेरे इन प्रश्नों की उत्तर हों तुम्हारे पास तो बताना
मैं हाथ का सदुपयोग करने को तैयार हूँ ………एक आज्ञाकारी वोटर की तरह
जबकि जानता हूँ
राजनीति के हमाम में सभी वस्त्रहीन हैं और मैं महज एक तमाशबीन
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लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है, चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है, चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती, कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती| कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।