ठिठुर-ठिठुर काली भई तुलसी हरा रूप जब भया कुरूप आँगन में तब आई धूप ! .................................... कातिल शीत हवाएं आकर चूस गयी तन का पीयूष आँगन में तब आई धूप ! ..................................... गर्म शॉल लगें सूती चादर कैसे काटें माघ व् पूस आँगन में तब आई धूप ! ................................... सब जन कांपें हाड़ हाड़ हो निर्धन या कोई भूप आँगन में तब आई धूप ! ...................................... हिम सम लगे सारा जल , क्या जोहड़ नहर व् कूप , आँगन में तब आई धूप ! ........................................ चहुँ ओर कोहरे की चादर , बना पहेली एक अबूझ , आँगन में तब आई धूप ! ..................................................... हुआ निठल्ला तन व् मन , गई अंगुलियां सारी सूज , आँगन में तब आई धूप ! ................................. पाले ने हमला जब बोला , बगिया सारी गई सूख , आँगन में तब आई धूप ! शिखा कौशिक 'नूतन'
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है, चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है। मन का विश्वास रगों में साहस भरता है, चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है। आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती, कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती| कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
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लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है, चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है, चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती, कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती| कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।